फरड़ोद की फुटबॉल टीम ने जीता फाइनल मुकाबला
फुटबॉल चैम्पियन्स के संघर्ष की दास्तान
यूँ ही नहीं जीते जाते रण के मैदान
यह जीत नहीं थी आसां यूहीं नहीं जीते जाते है रण के मैदान। घोर तपस्या,संघर्ष,लग्न,कड़ी मेहनत, के साथ मैदान में पसीना बहाना पड़ता है जनाब। यूहीं नहीं लिखी जाती हैं विजयगाथाएं। फरड़ोद की इस टीम ने एकबार फिर फरड़ोद के फुटबॉल इतिहास को दोहराने का कार्य किया है। फाइनल मुकाबला बेहद रोचक रहा। विपक्षी टीम मजबूत तो थी ही उपर से वहां के दर्शको का सर्पोट पूरा विपक्षी दल को था ऐसे में जीत पाना बेहद मुश्किल था। कहते हैं ना कि मुश्किलों का सामना तो रणबांकुरे ही किया करते है कायरों का काम नहीं। चैम्पियन वही बनता है जो सामने आने वाली मुसीबतों व दिक्कतों को ही दिक्कत में डालकर विजय फतेह करते हैं। मैच के शुरुआत में ही विपक्षी टीम ने गोल दाग दिया ऊपर से दर्शकों की हूटिंग। ऐसे में फरड़ोद की टीम पर मानसिक दबाव बना लिया था विपक्षी टीम ने। पर फरड़ोद के रणबांकुरे कहां हार माननें वाले थे।
जैसे ही मनोज व ग्राम सरपंच इन दोनों की मैदान में मौजूदगी को देखतें ही फरड़ोद की पूरी टीम जोश में लौट आई।
फरड़ोद की टीम ने विपक्षी टीम पर करारा प्रहार करते हुए गोल दाग दिया। ऐसे मे विपक्षी खेमें में खलबली मच गई पूरा मैदान सन। दर्शकों और विपक्षी टीम ने इस गोल को अमान्य करार दिया और हूटिंग करने लगें।
विपक्षी टीम ने मैच रुकवा दिया ऐसे में फरड़ोद की टीम ने सुरक्षा हेतु पुलिस बल मंगवा लिया गया टीम सुरक्षा के लिए। बाद में उस गोल को मान्य माना गया। मैच खत्म होनें तक दोनों टीमें 1-1 की बराबरी पर थी। मैच निर्णय के लिए रैफरी को पेनल्टी यों का सहारा लेना पड़ा जिसमें फरड़ोद ने 3-2 से मैच को जीत लिया।
सही मायने इस जीत सबसे बड़े नायक शारीरीक शिक्षक हड़मानराम जी फरड़ौदा है उनकी लग्न मेहनत का यह नतीजा है कि आज टीम इस मुकाम पर है। इस जीत में मनोज का किरदार भी बहुत बड़ा है वह सुबह शाम हमेशा खिलाड़ियों को अभ्यास करवाना खेल के प्रति सकारात्मक सोच व अपने किट का आदर किस तरह किया जाता है उस पर खिलाड़ियों को मोटिवेट करना।
04 सितम्बर 2019 का प्रसंस्करण