फरड़ोद का फुटबाॅल इतिहास
आज हम बात करतें है दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल की। जहां भारत में क्रिकेट को धर्म की तरह माना जाता है पर उस देश में फुटबॉल को इतनी वरियता नहीं दी गई लेकिन राजस्थान के नागौर जिले का एक ऐसा गाँव फरड़ोद जो सिर्फ़ और सिर्फ फुटबॉल को अपना धर्म मानता है। इस गाँव में प्रत्येक घर से आपको फुटबॉलर मिल जायेगा। फुटबॉल का पर्याय है फरड़ोद गाँव इस गाँव के बच्चों युवाओं व बुजुर्गों में भी फुटबॉल के प्रति क्रेज है। हमें कईं बार लोग पूछते है कि आप के गांव में फुटबॉल को लेकर लोगों में इतनी दीवानगी कैसे है। आज हम आपको फरड़ोद के फुटबॉल इतिहास के बारे में बताते है। फरड़ोद के फुटबॉल का जनक किसी को माना गया है तो वह वरिष्ठ अध्यापक मोहम्मद अली (अनवरजी) को। जिन्होंने फरड़ोद के सरकारी विद्यालय में 10 सितम्बर 1975 को बतौर अध्यापक पदभार संभाला था। उस समय फरड़ोद का वर्तमान खेल मैदान एक बंजर भूमि थी और यहां रेत के धोरे व कंटिले पेड़ थे। उस समय उन्होंने उनको साफ व समतल करवाया। बबूल के कांटेदार टेहनियो से चारों और बाड़ करवाकर एक खेल मैदान बनाया। मोहम्मद अली सिर्फ एक अध्यापक थे जिनका कार्य मात्र बच्चों को पढ़ना था। लेकिन उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को खेलों में भी आगे बढाने का कार्य किया। मैने जब उनसे पूछा कि आपनें फुटबॉल को ही क्यों चुना तो उन्होंने हम बताया कि मेरा स्वयं की इस खेल में रूचि थी और बच्चे भी दूसरे खेलों की बजाय फुटबॉल खेलना पंसद करतें थे। सर्वप्रथम फरड़ोद की फुटबॉल टीम ने सन्1975-76 में तहसील स्तर पर कठौती ग्राम में हुई प्रतियोगिता में भाग लिया था। लेकिन उस समय कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई टीम। उसके बाद खाटू व आकोड़ा में हुई प्रतियोगिता में भी टीम का कुछ खास प्रदर्शन नहीं रहा। इसके बाद 1980 से शुरू हुआ था फरड़ोद के फुटबॉल का स्वर्णिम दौर। झाड़ेली ग्राम में हुई तहसील स्तर फुटबॉल प्रतियोगिता 1980-81 में फरड़ोद उपविजेता रहा। अध्यापक मोहम्मद अली ने तत्कालीन ग्राम सरपंच रामकरण धोजक से आग्रह करके 1981-82 में अपने फरड़ोद गाँव में फुटबॉल प्रतियोगिता रखी गई जहां सर्वप्रथम फरड़ोद की टीम तहसील स्तर पर विजेता बनी थी। उस वर्ष फरड़ोद की खो-खो, वाॅलीवाॅल में भी उपविजेता रही थी। डेगाना में 1981-82 जिला स्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिता में फरड़ोद की टीम पहली मर्तबा किसी जिला स्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिता में भाग लिया और विजेता बनी। सम्पूर्ण राजस्थान में इसके बाद शुरू हुआ था फरड़ोद का फुटबॉiल में एकछत्र राज। लगातार तीन वर्ष तक राज्यस्तर पर चैम्पियंन रहे। 1983 में डेगाना, 1984 में बांदीकुई दौसा (तत्कालीन जयपुर जिला) व 1985 में चितौड़ में हुई राज्य स्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिता में लगातार तीन वर्ष तक विजेता रहे ।इसके बाद फरड़ोद के फुटबॉल में उतार चढ़ाव आते गये फिर भी राज्यस्तर तथा जिला स्तर पर प्रदर्शन अव्वल रहा तथा ग्रामीणों में फुटबॉल के प्रति लोकप्रियता बरकरार रही 2014 के बाद में एक नया युग शुरू हुआ । उस दौरान से आज तक फरड़ोद से 88 खिलाड़ी राज्य स्तर पर और 13 खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके है ।फरड़ोद के फुटबॉल को नया स्वरूप देने के लिए मनोज जाट ने फरड़ोद क्लब फुटबॉल का गठन करवाकर इसके बाद फरड़ोद में हर वर्ष फुटबॉल शिविर लगाया जाता है फरड़ोद क्लब फुटबॉल की और से ताकि खिलाड़ियों के खेल में निखार लाया जा सके।
▪लेकिन फरड़ोद में फुटबॉल के इतिहास को जब भी खंगाला जायेगा तो सुखवीर सिंह और अब्दुल रहमान का नाम सर्वोपरि लिया जायेगा। इनका फरड़ोद में फुटबॉल के इतिहास में अविस्मरणीय योगदान रहा।
▪सुखराम भाटी, मनोज जाट व शमशेर खान इन तीनों खिलाड़ियों ने राजस्थान फुटबॉल टीम का बतौर कप्तान प्रतिनिधित्व किया है।
▪राष्ट्रीय स्तर पर खेल हुऐ फुटबॉल खिलाड़ी -
●प्रतापराम चांगल ●सुखराम भाटी
●हड़मानराम फरड़ौदा ●सोहन लाल
●जगदीश प्रसाद ●चन्द्रसिंह फरड़ौदा
●बलदेवराम बिडियासर ●मांगीलाल गुर्जर
●पाबुराम गुर्जर ●प्रेमाराम ●चेनाराम चांगल
●बलदेव राम फरड़ौदा ●हीराराम गुर्जर
●दिनेशकुमार शर्मा ●ओमाराम ●रामकिशोर फरड़ौदा ●नाथूराम शर्मा ●रामप्रसाद ●रेंवतराम गुर्जर
●मनोज जाट ●मुकेश फरड़ौदा ●शमशेर खान ●पूनमचन्द ●तपस्वीकरण ●सचिन फरड़ौदा
✍लेखन
नवरतन मेघवाल
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