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रविवार, 7 नवंबर 2021

फरड़ोद एक गृहिणी जो रीट परीक्षा के टाॅपर्स की लिस्ट में हुई शामिल ।

प्रत्येक देश के दो पंख होते हैं एक स्त्री दूसरा पुरुष देश की उन्नति में एक पंख से उड़ान नहीं भर सकते।
जेम्स स्टीफेंस ने कहा था की स्त्रियां पुरुषों से अधिक बुद्धिमान होती है क्योंकि वह पुरुष से कम जानती, किंतु उससे अधिक समझती है। 

एक महिला जिसका पति सरहद पर देश की रक्षा में लगा हो है और वह अपने पत्नि मां व बहू का फर्ज अदा करते हुए, अपनी लग्न व कड़ी मेहनत की बदौलत रीट परीक्षा में टॉपर्स की श्रेणी में स्वयं को शामिल करती हैं। आज हम बात करते हैं फरड़ोद के रामदेव फरड़ौदा की पुत्रवधू सुमन चौधरी की जिनके पांच वर्ष का एक लड़का भी है। सुमन एक पुरुष प्रधान समाज में रहकर उन्होंने शिक्षा के कारण अपनी अलग पहचान बनाई है, एक महिला की तमाम जिम्मेदारियों को निभाते हुए। उनके पति हवलदार ओमप्रकाश ने हमें बताया कि सुमन ने 2012 में RPET (राजस्थान प्री इंजीनियरिंग टेस्ट) क्वालिफाई किया था। सांइस मैथमेटिक्स में B.sc. व ह्युमन राइट्स डिप्लोमा भी किया हुआ है। उन्होंने बताया कि सुमन ने दो मर्तबा CTET (सेंट्रल टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट) को 2018 में 92 अंकों व 2019 में 111 अंकों के साथ क्वालीफाई किया। अब इस साल रीट 2021 लेवल1 की परीक्षा में 150 में 141 अंक प्राप्त किए।
हमनें सुमन से उनके सफलता की राह टंटोलना चाहा तो उन्होंने ने हमें बताया कि अपने आप में विश्वास होना जरूरी है कि यह में कर सकता हूं, अपने आप को अडिग दृढ़संकल्पित होकर लक्ष्य को साधना, ना कि पेपर लीक या आउट होते हैं या पहले ही पेपर बिक जाते हैं ऐसी बातों में आकर अपना आत्मविश्वास ना गिराए और मानसिक रूप कमजोर होते हैं, अगर आपने मेहनत की है तो पेपर बिकता है तो बिकने दो उन पर ध्यान मत दो आपकों आपनी मेहनत पर विश्वास करना उसका का फल अवश्य मिलेगा।
उन्होंने बताया कि मैंने 15 से 20 बार रिवीजन तथा अत्यधिक टेस्ट दिए एवं ग्रुप डिस्कशन किया। माता पिता का सपोर्ट (सहयोग) तो हर बच्चे को मिलता है पर मुझे माता पिता के साथ-साथ सास ससुर जी का पूरा योगदान मिला
मैं अपनी सफलता का श्रेय सास ससुर जी व अपनी पति को देती हूं।
स्त्री कभी हारती नहीं है उसे हराया जाता है समाज क्या कहेगा यह कहकर बचपन से डराया जाता है। 

शनिवार, 4 सितंबर 2021

फुटबॉल चैम्पियन्स के संघर्ष की दास्तान

फरड़ोद की फुटबॉल टीम ने जीता फाइनल मुकाबला
फुटबॉल चैम्पियन्स के संघर्ष की दास्तान 
यूँ ही नहीं जीते जाते रण के मैदान

यह जीत नहीं थी आसां यूहीं नहीं जीते जाते है रण के मैदान। घोर तपस्या,संघर्ष,लग्न,कड़ी मेहनत, के साथ मैदान में पसीना बहाना पड़ता है जनाब। यूहीं नहीं लिखी जाती हैं विजयगाथाएं। फरड़ोद की इस टीम ने एकबार फिर फरड़ोद के फुटबॉल इतिहास को दोहराने का कार्य किया है। फाइनल मुकाबला बेहद रोचक रहा। विपक्षी टीम मजबूत तो थी ही उपर से वहां के दर्शको का सर्पोट पूरा विपक्षी दल को था ऐसे में जीत पाना बेहद मुश्किल था। कहते हैं ना कि मुश्किलों का सामना तो रणबांकुरे ही किया करते है कायरों का काम नहीं। चैम्पियन वही बनता है जो सामने आने वाली मुसीबतों व दिक्कतों को ही दिक्कत में डालकर विजय फतेह करते हैं। मैच के शुरुआत में ही विपक्षी टीम ने गोल दाग दिया ऊपर से दर्शकों की हूटिंग। ऐसे में फरड़ोद की टीम पर मानसिक दबाव बना लिया था विपक्षी टीम ने। पर फरड़ोद के रणबांकुरे कहां हार माननें वाले थे। 
जैसे ही मनोज व ग्राम सरपंच इन दोनों की मैदान में मौजूदगी को देखतें ही फरड़ोद की पूरी टीम जोश में लौट आई।
फरड़ोद की टीम ने विपक्षी टीम पर करारा प्रहार करते हुए गोल दाग दिया। ऐसे मे विपक्षी खेमें में खलबली मच गई पूरा मैदान सन। दर्शकों और विपक्षी टीम ने इस गोल को अमान्य करार दिया और हूटिंग करने लगें।
विपक्षी टीम ने मैच रुकवा दिया ऐसे में फरड़ोद की टीम ने सुरक्षा हेतु पुलिस बल मंगवा लिया गया टीम सुरक्षा के लिए। बाद में उस गोल को मान्य माना गया। मैच खत्म होनें तक दोनों टीमें 1-1 की बराबरी पर थी। मैच निर्णय के लिए रैफरी को पेनल्टी यों का सहारा लेना पड़ा जिसमें फरड़ोद ने 3-2 से मैच को जीत लिया। 
सही मायने इस जीत सबसे बड़े नायक शारीरीक शिक्षक हड़मानराम जी फरड़ौदा है उनकी लग्न मेहनत का यह नतीजा है कि आज टीम इस मुकाम पर है। इस जीत में मनोज का किरदार भी बहुत बड़ा है वह सुबह शाम हमेशा खिलाड़ियों को अभ्यास करवाना खेल के प्रति सकारात्मक सोच व अपने किट का आदर किस तरह किया जाता है उस पर खिलाड़ियों को मोटिवेट करना।

04 सितम्बर 2019 का प्रसंस्करण

रविवार, 29 अगस्त 2021

गांव के लड़के को Wal-Mart कम्पनी से मिला लाखों का पैकेज

परिंदो को मिलेगी मंज़िल एक दिन

ये फैले हुए उनके पर बोलते है

और वही लोग रहते है खामोश अक्सर

ज़माने में जिनके हुनर बोलते है!!



कहते हैं ना कि इंसान की सबसे बड़ी ताकत शिक्षा होती है इसी का एक छोटा सा उदाहरण आपके सम्मुख रख रहा हूँ शायद आप सभी ग्रामवासियों को पंसद आयेगा और युवा वर्ग को इससे काफी प्ररेणा भी मिलेगी।


हमारे गांव के सुण्डाराम फरड़ौदा (सॉफ्टवेयर इंजीनियर सुंदरम्) Walmart कम्पनी (विश्व की सबसे बड़ी रेवन्यू अर्थात राजस्व कमाने वाली कम्पनी) ने प्रमोशन करते हुए उनका सालाना पैकेज 2236800/- रु. (बाईस लाख छतीस हजार आठ सौ रुपये) किया गया है। 

सुण्डाराम बचपन से ही पढ़ाई में होशियार व अनुशासित छात्र रहा है। फरड़ोद का वह पहला छात्र था जो आठवीं कक्षा में मेरिट 90%+ में आने वाला (2005-06) में। इससे पहले फरड़ोद के लोगों को मेरिट के बारे मे कम ही मालूम था तब इस शख्सियत ने वो कारनामा करके दिखाया था उसी का आज यह नतीजा है कि वह आज सफलता के बुलंदियों पर खड़े हैं।

कक्षा 10वीं तक की पढ़ाई फरड़ोद की सरस्वती विद्यालय में की। आगे पढ़ाई के लिए वह जोधपुर चले गए श्री महेश सी.सै. विद्यालय जोधपुर से कक्षा 11th & 12th विज्ञान संकाय से की पूर्ण की।

बाद में चैन्नई के SRM यूनिवर्सिटी से B.Tech की पढा़ई पूर्ण करने के बाद फरवरी 2015 में वह Wipro Limited कम्पनी बैंगलोर में बतौर प्रोजेक्ट इंजीनियर पद पर आसीन हुए। अक्टूबर 2017 में Amdocs India पुणे में Software Developer के पद पर कार्य किया। वहीं जुलाई 2018 से वर्तमान में पुणे की Infosys Pune Phase-2 में Senior Associate Consultant के पद पर कार्यरत् है।

Amodcs कम्पनी ने अपने ऑफिस कार्य के लिए सुण्डाराम को ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर भी भेजा था।

और वह उनको अनेक भाषाओं की जानकारी है संस्कृत अग्रेंजी हिन्दी जापानी राजस्थानी आदि भाषाओं का ज्ञान रखते है।

सुण्डाराम का खेलों से भी काफी जुड़ाव  हैं, खासकर क्रिकेट से।

वह एक शालीन व बौध्दिक शक्ति के धनी शख्सियत है।

फरड़ोद का फुटबाॅल इतिहास


 फरड़ोद का फुटबाॅल इतिहास 

आज हम बात करतें है दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल  फुटबॉल की। जहां भारत में क्रिकेट को धर्म की तरह माना जाता है पर उस देश में फुटबॉल को इतनी वरियता नहीं दी गई लेकिन राजस्थान के नागौर जिले का एक ऐसा गाँव फरड़ोद जो सिर्फ़ और सिर्फ फुटबॉल को अपना धर्म मानता है। इस गाँव में प्रत्येक घर से आपको फुटबॉलर मिल जायेगा। फुटबॉल का पर्याय है फरड़ोद गाँव इस गाँव के बच्चों युवाओं व बुजुर्गों में भी  फुटबॉल के प्रति क्रेज है। हमें कईं बार लोग पूछते है कि आप के गांव में फुटबॉल को लेकर लोगों में इतनी दीवानगी कैसे है। आज हम आपको फरड़ोद के फुटबॉल इतिहास के बारे में बताते है। फरड़ोद के फुटबॉल का जनक किसी को माना गया है तो वह वरिष्ठ अध्यापक मोहम्मद अली (अनवरजी) को। जिन्होंने फरड़ोद के सरकारी विद्यालय में 10 सितम्बर 1975 को बतौर अध्यापक पदभार संभाला था। उस समय फरड़ोद का वर्तमान खेल मैदान एक बंजर भूमि थी और यहां रेत के धोरे व कंटिले पेड़ थे। उस समय उन्होंने उनको साफ व समतल करवाया। बबूल के कांटेदार टेहनियो से चारों और बाड़ करवाकर एक खेल मैदान बनाया। मोहम्मद अली सिर्फ एक अध्यापक थे जिनका कार्य मात्र बच्चों को पढ़ना था। लेकिन उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को खेलों में भी आगे बढाने का कार्य किया। मैने जब उनसे पूछा कि आपनें फुटबॉल को ही क्यों चुना तो उन्होंने हम बताया कि मेरा स्वयं की इस खेल में रूचि थी और बच्चे भी दूसरे खेलों की बजाय फुटबॉल खेलना पंसद करतें थे। सर्वप्रथम फरड़ोद की फुटबॉल टीम ने सन्1975-76 में तहसील स्तर पर कठौती ग्राम में हुई प्रतियोगिता में भाग लिया था। लेकिन उस समय कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई टीम।  उसके बाद खाटू व आकोड़ा में हुई प्रतियोगिता में भी टीम का कुछ खास प्रदर्शन नहीं रहा। इसके बाद 1980 से शुरू हुआ था फरड़ोद के फुटबॉल का स्वर्णिम दौर। झाड़ेली ग्राम में हुई तहसील स्तर फुटबॉल प्रतियोगिता 1980-81 में फरड़ोद उपविजेता रहा। अध्यापक मोहम्मद अली ने तत्कालीन ग्राम सरपंच रामकरण धोजक से आग्रह करके 1981-82 में अपने फरड़ोद गाँव में फुटबॉल प्रतियोगिता रखी गई जहां सर्वप्रथम फरड़ोद की टीम तहसील स्तर पर विजेता बनी थी। उस वर्ष फरड़ोद की खो-खो, वाॅलीवाॅल में भी उपविजेता रही थी। डेगाना में 1981-82 जिला स्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिता में फरड़ोद की टीम पहली मर्तबा किसी जिला स्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिता में भाग लिया और विजेता बनी। सम्पूर्ण राजस्थान में इसके बाद शुरू हुआ था फरड़ोद का फुटबॉiल में एकछत्र राज। लगातार तीन वर्ष तक राज्यस्तर पर चैम्पियंन रहे। 1983 में डेगाना, 1984 में बांदीकुई दौसा (तत्कालीन जयपुर जिला) व 1985 में चितौड़ में हुई राज्य स्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिता में लगातार तीन वर्ष तक विजेता रहे ।इसके बाद फरड़ोद के फुटबॉल में उतार चढ़ाव आते गये फिर भी राज्यस्तर तथा जिला स्तर पर प्रदर्शन अव्वल रहा तथा ग्रामीणों में फुटबॉल के प्रति लोकप्रियता बरकरार रही 2014 के बाद में एक नया युग शुरू हुआ । उस दौरान से आज तक फरड़ोद से 88 खिलाड़ी राज्य स्तर पर और 13 खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके है ।फरड़ोद के फुटबॉल को नया स्वरूप देने के लिए मनोज जाट ने फरड़ोद क्लब फुटबॉल का गठन करवाकर इसके बाद फरड़ोद में हर वर्ष फुटबॉल शिविर लगाया जाता है फरड़ोद क्लब फुटबॉल की और से ताकि खिलाड़ियों के खेल में निखार लाया जा सके।

▪लेकिन फरड़ोद में फुटबॉल के इतिहास को जब भी खंगाला जायेगा तो सुखवीर सिंह और अब्दुल रहमान का नाम सर्वोपरि लिया जायेगा। इनका फरड़ोद में फुटबॉल के इतिहास में अविस्मरणीय योगदान रहा।

▪सुखराम भाटी, मनोज जाट व शमशेर खान इन तीनों खिलाड़ियों ने राजस्थान फुटबॉल टीम का बतौर कप्तान प्रतिनिधित्व किया है।

▪राष्ट्रीय स्तर पर खेल हुऐ फुटबॉल खिलाड़ी - 

●प्रतापराम चांगल     ●सुखराम भाटी

●हड़मानराम फरड़ौदा ●सोहन लाल 

●जगदीश प्रसाद       ●चन्द्रसिंह फरड़ौदा 

●बलदेवराम बिडियासर ●मांगीलाल गुर्जर

●पाबुराम गुर्जर ●प्रेमाराम ●चेनाराम चांगल 

●बलदेव राम फरड़ौदा ●हीराराम गुर्जर

●दिनेशकुमार शर्मा ●ओमाराम ●रामकिशोर फरड़ौदा  ●नाथूराम शर्मा ●रामप्रसाद ●रेंवतराम गुर्जर 

●मनोज जाट ●मुकेश फरड़ौदा ●शमशेर खान ●पूनमचन्द ●तपस्वीकरण ●सचिन फरड़ौदा 


      ✍लेखन 

    नवरतन मेघवाल

शनिवार, 28 अगस्त 2021

एक एमबीबीएस छात्र और उसके परिवार का संघर्ष

 #एक_एमबीबीएस_छात्र_और_उसके_परिवार_का_संघर्ष


फरड़ोद का एक लड़का जो पढाई में होशियार होने के कारण माता-पिता ने अपने बेटे को एक डाॅक्टर बनाने का सपना देखा। छात्र रिछपाल फरड़ौदा के 12वीं कक्षा उतीर्ण करने के बाद एजेन्ट के ज़रिये अपने बेटे को MBBS करने के लिए विदेश भेजा। 2007 में Tbilisi State Medical University जाॅर्जिया में एडमिशन लिया। रिछपाल ने मई 2014 MBBS की पढाई पूरी की। जब एमबीबीएस के लिए एडमिशन लिया गया उस समय रिछपाल और उनके माता-पिता को MBBS की जरूरी गाइडलाइन्स का पता नहीं था इसका फायदा एजेंट नें उठाया।


पैसे के लिए उसने एक छात्र व उसके माता-पिता को अंधरे में रखकर उनके सपनों व भविष्य को अंधकार में धकेल दिया।
MBBS करने के लिए एडमिशन के समय छात्र की उम्र 17वर्ष होनी चाहिए। जबकि रिछपाल के एडमिशन के समय उसकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी। एडमिशन के समय कम उम्र(अंडर ऐज) होने के उनके कारण MBBS डिग्री की मान्यता को मंजूरी नहीं दी गई और एलिजिबल सर्टिफिकेट (योग्यता प्रमाण-पत्र) देने से मना कर दिया गया।
इसके कारण वह विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (FMGE- Foreign Medical Graduate Examination) नही दे सकता था। इसका मतलब उसकी MBBS डिग्री कोरे कागज की तरह हो गई थी। इसके लिए 2015 में रिछपाल ने वकील से कानूनी सलाह लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की ताकि इस समस्या से निजात मिल सके। मामला कोर्ट में चल ही रहा था कि इस बीच 2017 में उनके वकील की मौत हो गई। उनके लिए मामला और भी पैंचिदा हो गया।
दिसम्बर 2017 में रिछपाल की शादी हो गई अब की घर की जिम्मेदारियां अलग से। और 2018 आते आते उनकी याचिका खारिज (केस हार गये) हो गई। रिछपाल के साथ उसके माता-पिता को गहरा धक्का लगा की अपने जीवन की पूरी पूँजी बेटे की पढ़ाई पर लगा दी और पढाई के लिए लोगों से लाखों का कर्जा ले रखा था। आप सोचिए उस परिवार की क्या मनोदशा होगी। रिछपाल ने हमें बताया कि उस समय ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई कि परिवार आर्थिक एवं मानसिक तौर पर असंतुलित हो गया। मैं स्वयं अपने आप से गुस्सा होने लगा कि मेरी वजह से मेरे परिवार की यह स्थिति हो गई लेकिन असल में वह मेरी वजह नहीं थी उस एजेंट की पैसों की लालसा ने मेरी और मेरे परिवार की ऐसी हालात कर दी।
रिछपाल ने हमें बताया की एक समय तो सुसाइड तक करने की विचार कर लिया। मै एकदम हार गया था कि आज मेरे पास योग्यता होते हुए भी मैं बेकार पड़ा हूँ!
लेकिन हमनें फिर कोर्ट में पुनर्विचार याचिका (रिअपील) दाखिल की। आखिर उस संघर्ष की जीत हुई 18 अक्टूबर 2019 को कोर्ट ने फैसला हमारे पक्ष में सुनाया।
मामला पक्ष में आने के बाद सारे दस्तावेज़ों में बदलाव किया गया। उस समय परिवार में एक खुशी का माहौल बना लेकिन वह छात्र जो अपनी पढाई से कोसों दूर चला गया उसका मन और दिमाग सोच रहा था कि मैने तो किताबों की और देखे हुए 6 साल हो गया। मै अपने भीतर ही भीतर सोंच रहा था कि मेरा पढाई का स्तर तो एकदम शून्य है।
इस बीच उन्होंने दिसम्बर 2017 व जून 2018 में FMGE परीक्षा दी थी लेकिन उनके पास एलिजिबल सर्टिफिकेट नहीं होने के कारण परिणाम को रोक दिया गया था।
वापस अगस्त 2020 में विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (FMGE) दी लेकिन जरूरी 150अंको के मुकाबले मात्र 78 अंक ही प्राप्त हुए। 04 दिसम्बर 2020 को परीक्षा दी उसमें उनको 77 अंक मिलें रिछपाल ने हमें बताया की इस परीक्षा के 300 प्रश्नों में से मुझे 3 प्रश्नों के उतर ही क्लियर तौर पर आ रहे थे।
हमें बताते हुए कहा कि मेरे 7 सालों की उस मेरी प्रताड़ना के कारण मेरा और किताबों के बीच इतना फासला हो गया कि आप विचार कीजिए जब मैं दिसम्बर 2020 को परीक्षा केन्द्र में बैठा तो मेरे सामने पड़े उस पेपर को देखकर अचंभित रहे गया कि मुझे 300 में से 3 सवालों के जवाब आते है ।
कितना फासला हो गया आप सोचिए जरा रिछपाल का अपनी पढाई से। इसके बाद उस छात्र ने पूरी तरह से उम्मीद और आशा छोड़ दी कि अब मेरा सलेक्शन होगा।
लेकिन अब भी एक उम्मीद जिंदा थी वो थी "माँ" !
रिछपाल की "माँ" ने उसे अपने विश्वास के साथ उम्मीद और हौसला दिया।
"कि बेटा तू पढ़ कोचिंग कर हमें अपनी खेती-बाड़ी भी बेचनी पड़े तो बेचेंगे लेकिन तुझे परिवार का सपना पूरा करना है डाॅक्टर बनकर।
20 फरवरी 2021 को एक उस छात्र के जीवन में नये अध्याय की शुरूआत हुई। कोचिंग करने के लिए दिल्ली के लिए रवाना हुआ। डाॅ . आशिष सर द्वारा संचालित NLC ( Next learning Centre) गौतम नगर दिल्ली की इस कोचिंग सेन्टर में दाखिला लिया और वहीं किसी छात्रावास में रहने लगा।
जब कोचिंग करने के लिए तब तक उस कोचिंग इंस्टीटयूट का 19 विषय में से 11 विषयों का सेलब्स पूरा हो गया बाकी बचे 8 में से 4 विषयों का सेलब्स पूरा हो रहा ही था कि बाकी बचे 4 विषयों का सेलब्स कोरोना काल के कारण लगे लाॅकडाउन की भेंट चढ़ गये।
लेकिन कहतें है ना कि जैसी संगत वैसा फल। रिछपाल ने हमें बताया कि मेरा FMGE परीक्षा पास करना एक संगत का फल है।
मैं जिस कोचिंग इंस्टीटयूट में तैयार करने के लिए गया था वहीं से कोचिंग कर रहे हिमाचल प्रदेश के लक्ष्मीचंद ठाकुर से मेरी मुलाकात हुई रोज की मुलाकात एक दोस्ती में तब्दील हो गई। मैं छात्रावास में रहता था और वह
अपने एक रूम पार्टनर पियूष कुमार सिंह के किराये के कमरे में रहकर और खुश्बू शाह (छात्रावास) उन्ही के साथ तैयारी कर रहे थे। उस अजनबी (लक्ष्मीचंद ठाकुर) से ऐसा लगाव और दोस्ती हुई की मेरी वह मुझे छात्रावास में जाने नहीं देते अपने साथ रहकर तैयारी करने के लिए कहा और मेरे जीवन में वह एक गाॅडफादर की आये। मेरे जैसा छात्र जो पूरी तरह टूट चुका हो आर्थिक और मानसिक तौर पर। जिसकी पढाई निल बट्टा सन्नाटा तक पहुँच चुकी थी । उस टूटे लड़के को हिम्मत दी और उन तीनों ने मोटिवेट किया और उन तीनों कहा हम पास हो या ना हो तुझे गौतम नगर दिल्ली से पास करवाकर भेजेंगे चहा तेरा पूरा खर्चा हमें ही उठाना पड़े और अपनी और उठाया भी। मुझे तीनों ने पढ़ाने शुरू कर दिया इस बीच मै बीमार पड़ गया उन्होंने मेरी एक मां की भांति मेरा ख्याल रखा।
आज जो मैने FMGE की परीक्षा पास करने के पीछे उन तीनों का बहुत सहयोग रहा। मैने सफल होने के लिए हर एक लोगों से जो इस क्षेत्र में थे उनसे गाइडेंस ली। रिछपाल ने हमें बताया कि हमारे फिल्ड के कई छात्र ऐसे है जो पहले प्रयास में असफल होने पर हिम्मत हारकर सुसाइड कर लेते है उन्हें एकबार मेरे जीवन की कहानी जरूर पढनी चाहिए। मेरी कहानी पढने के बाद आप में हौसला और हिम्मत जरूर आ जायेंगी कि यह लड़का इतनी विपदाओं और कठिनाईयों के बावजूद सफल हुआ तो मैं क्यों नहीं। आप सभी छात्रों से मै अपील करता हूँ कि आप कभी हिम्मत मत हारो तब तक संघर्ष करते रहो जब तक लक्ष्य प्राप्ति ना हो जाये। जिन्होंने भी मेरी मुश्किल घड़ी में मेरा साथ दिया मुझे गाइड किया उन सभी अध्यापकों, दोस्तों, रिश्तेदारों को धन्यवाद देता हूँ कि आपनें मेरा साथ दिया।
रिछपाल ने हमें बताया कि रोज में एक कविता सुनता था - #तुम_मुझको_कब_तक_रोकोगें

मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं ।
दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं… कुछ कर जाएं…
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे..
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे…
अपनी हद रौशन करने से,
तुम मुझको कब तक रोकोगे…
तुम मुझको कब तक रोकोगे

फरड़ोद के नवरतन शर्मा बना चार्टर्ड अकाउंटेंट्स।

 द स्टूडेंट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया द्वारा घोषित परिणाम में ग्राम फरड़ोद के नवरतन शर्मा पुत्र राजकुमार शर्मा का चयन हुआ है। नवरतन ...